डायबिटीज कैसे होता है ?

 आजकल डायबिटीज़ हर घर की आम समस्या बनती जा रही है। लेकिन क्या हमने कभी ठहरकर यह समझने की कोशिश की है कि डायबिटीज़ होती क्या है, क्यों होती है और अपनी दिनचर्या की छोटी-छोटी आदतों को अपनाकर आप इससे कैसे बचे रह सकते हैं 

चलिए मित्रों, आज इस विषय पर आपकी समझ एकदम क्लियर करते हैं! जब हम कोई भोजन करते हैं, तो उस भोजन को हमारे शरीर का पाचन तंत्र छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर देता है, जिनमें से पोषक तत्वों, प्रोटीन, शुगर और फैट आदि को अलग कर दिया जाता है और इनका प्रयोग शरीर की एनर्जी, मरम्मत और वृद्धि के लिए किया जाता है। हमारे शरीर में एक अंग होता है अग्न्याशय यानी पैंक्रियास— जो इंसुलिन नाम का हार्मोन बनाता है। इंसुलिन की मदद से हमारे खाए हुए भोजन की शुगर, हमारी कोशिकाओं तक पहुँचती है ताकी हमें एनर्जी मिल सके।इंसुलिन हमारे मसल्स, लिवर और फैट सेल्स को एक्टिवेट करता है, जैसे ही इंसुलिन हमारी सेल्स को एक्टिवेट करता है, वैसे ही हमारे खून में मौजूद शुगर, सेल में जाकर इकट्ठा हो जाता है और एनर्जी बनाने में मदद करता है।लेकिन मित्रों, अगर हमारा पैंक्रियास किसी कारण से इंसुलिन का निर्माण नहीं कर पाता है या इंसुलिन बनने के बावजूद, इंसुलिन सेल्स में किसी कारणवश एब्जॉर्ब नहीं होता तो खून में मौजूद शुगर, सेल्स में एब्जॉर्ब नहीं हो पाता, और एनर्जी निर्माण का कार्य रुक जाता है। इसी कंडीशन को डायबिटीज कहते हैं। मित्रों, डायबिटीज दो प्रकार की होती है।एक होती है Type 1 Diabetes, और दूसरी होती है Type 2 डायबिटीज़ है ! 

Type 1 डायबिटीज में हमारा शरीर बहुत कम इंसुलिन बनाता है या बिलकुल भी नहीं बनाता है।ऐसा तब होता है जब हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम हमारे पैंक्रियास में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं “बीटा सेल्स” पर हमला करती है और उन्हें नष्ट कर देती है।टाइप 1 डायबिटीज़ अक्सर बच्चों में या किशोर अवस्था में शुरू हो जाती है है - जैसे कि 12 साल की उम्र से ही, और यह समस्या युवाओं में ज़्यादा देखने को मिलती है। और जब शुगर सेल्स के अंदर नहीं जाएगी, तो सेल को एनर्जी कहां से मिलेगी? धीरे-धीरे शरीर थकने लगता है, और कमज़ोर होने लगता है।Type 2 डायबिटीज़ तब होता है जब पैंक्रियास इंसुलिन तो बनाता है, लेकिन हमारे मसल्स, लिवर और फैट सेल्स के ऊपर जो रिसेप्टर्स होते हैं, वो ठीक से काम नहीं कर रहे होते हैं।रिसेप्टर्स वो प्रोटीन होते हैं जो कोशिका के अंदर या कोशिका की सतह पर पाए जाते हैं। ये प्रोटीन कोशिका के लिए संदेश प्राप्त करने और प्रतिक्रिया करने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।जब ये रिसेप्टर्स यानी वो ताला जिसमें इंसुलिन चाबी बनकर सेल को खोल सके वो ठीक से काम ही नहीं कर रहे होते है, तो इंसुलिन ब्लड शुगर को कोशिकाओं में एब्जॉर्ब होने में मदद नहीं कर पाता है, और एनर्जी का निर्माण नहीं होता।इसे ही टाइप 2 डायबिटीज़ कहते हैं ये ज़्यादातर बड़ी उम्र के व्यक्ति या उन लोगों में ज़्यादा होता है जो ओवरवेट होते हैं और जिनकी लाइफस्टाइल एक्टिव नहीं होती है। और जब ब्लड शुगर सेल के अंदर पहुँचेगा ही नहीं, तो सेल को एनर्जी कहां से मिलेगी? इसीलिए धीरे-धीरे व्यक्ति का शरीर कमज़ोर होने लगता है।

टाइप 2, डायबिटीज का सबसे आम प्रकार है, अगर आपके पास बीमारी का पारिवारिक इतिहास है, तो आपको टाइप 2 डायबिटीज होने की अधिक संभावना है। देखिए दोनों ही कंडीशन में हो ये रहा है कि ब्लड में मौजूद शुगर के मॉलिक्यूल अंगों के अंदर – स्पेशली मसल्स, लिवर – इन सब के अंदर स्टोर ही नहीं हो पा रहे है, जो व्यक्ति को एनर्जी बनाने के लिए सबसे ज़्यादा इंपॉर्टेंट है।जबकि शरीर को ताक़त देने और सेहतमंद रहने के लिए यह ज़रूरी है कि ये शुगर मसल्स, लिवर और फैट सेल्स के अंदर पहुँचे और वहीं स्टोर हो।जिससे एनर्जी जेनरेट होती रहे, और शरीर कमज़ोर न हो! पर डायबिटीज़ (मधुमेह) के लक्षणों को पहचानें कैसे ? मित्रों इसके लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और अक्सर लोग शुरुआत में इन्हें सामान्य थकान या उम्र से जुड़ी समस्या समझ लेते हैं। मधुमेह के प्रमुख लक्षणों में सबसे आम लक्षण बार-बार पेशाब का आना है। जब शरीर में ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ जाता है, तो वह उसे मूत्र के ज़रिए बाहर निकालने की कोशिश करता है, जिससे पेशाब की मात्रा और बारंबारता बढ़ जाती है। इसके साथ ही अधिक प्यास लगना भी एक आम संकेत है, क्योंकि बार-बार पेशाब आने के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है और व्यक्ति को बार-बार प्यास लगने लगती है। भूख में वृद्धि भी मधुमेह का लक्षण हो सकता है, क्योंकि शरीर को एनर्जी नहीं मिल पा रही होती है, जिससे व्यक्ति को लगातार भूख महसूस होती है। इसके बावजूद, वजन में गिरावट देखी जाती है, जो एक और प्रमुख लक्षण है। थकान रहना या हमेशा सुस्त महसूस करना भी दर्शाता है कि शरीर को आवश्यक एनर्जी नहीं मिल रही है। यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण या संकेत महसूस हो, तो हमें तुरंत ही किसी अच्छे डॉक्टर या विशेषज्ञ से चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए और उनकी सलाह माननी चाहिए। अब सवाल ये उठता है कि ये किन कारणों से होती है और इसे हम किन तरीकों से रोक सकते हैं? डायबिटीज़ कोई अचानक होने वाली बीमारी नहीं है। ये हमारी जीवनशैली, खानपान और शारीरिक गतिविधियों से धीरे-धीरे जुड़ती हुई एक गंभीर स्थिति बन जाती है। जब हम बहुत अधिक प्रोसेस्ड फूड यानि कि वे खाद्य पदार्थ जिन्हें उनकी नेचुरल अवस्था से बदला गया हो, जैसे कि उन्हें काटा, पकाया, डिब्बाबंद, फ्रोजन या पैकेज्ड किया गया हो, या फिर उनमें नमक, चीनी आदि डालकर उन्हें संरक्षित किया गया हो, जिससे उन्हें ज़्यादा दिनों तक सुरक्षित रखा जा सके, जैसे कि चिप्स, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक्स आदि , मीठी चीज़ें, जंक फूड और तले-भुने पदार्थ खाते हैं और साथ ही हमारी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधि ना के बराबर होती है तो शरीर का मेटाबॉलिज्म कमजोर होने लगता है। जिससे धीरे-धीरे इंसुलिन का असर कम होने लगता है, या पैंक्रियास पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाना बंद कर देता है।नतीजा – खून में शुगर का स्तर बढ़ जाता है, जो डायबिटीज़ की शुरुआत होती है।अनियमित जीवनशैली यानी देर रात तक जागना, नींद पूरी न करना, तनाव में रहना और बिना टाइम के खाना खाना, ये सभी आदतें शरीर के हार्मोन्स को असंतुलित कर देती हैं, जिससे इंसुलिन की कार्यप्रणाली पर असर पड़ता है।गलत खानपान जैसे जंक फूड, रासायनिक युक्त खाद्य पदार्थ, प्रोसेस्ड फूड और शारीरिक गतिविधियों में कमी, ज़्यादा वजन, शरीर में इंसुलिन की मात्रा को असंतुलित या इंसुलिन रेजिस्टेंस की स्थिति पैदा कर देते हैं और डायबिटीज़ का कारण बन जाते हैं।लेकिन मित्रों क्या आप जानते हैं, हमारे पूर्वज लंबे समय तक स्वस्थ जीवन क्यों जीते थे? क्योंकि वो शुद्ध और नेचुरल खाद्य पदार्थों का सेवन करते थे। उन्हें बीमारियाँ कम होती थीं और उनका जीवन दीर्घायु होता था। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि वे शारीरिक मेहनत करते थे और खेतों में काम किया करते थे। इसके अलावा वे रासायनिक युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करते थे, बल्कि शुद्ध और नेचुरल रूप से तैयार गुड़, खांड और अनाजों का ही सेवन करते थे। अगर हम बाज़ार में मिलने वाली चीनी की बात करें इसका उत्पादन करने के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक तत्वों का प्रयोग किया जाता है, जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। इनमें मौजूद केमिकल्स शरीर को धीमे ज़हर की तरह नुकसान पहुँचाते हैं। जबकि हमारे पूर्वज नेचुरल रूप से तैयार गुड़ और खांड का उपयोग अपनी दैनिक मिठास की ज़रूरतों जैसे दूध, चाय, खीर आदि में किया करते थे। यह न केवल स्वाद में बेहतर होते है, बल्कि इनमें कई प्रकार के मिनरल्स और विटामिन्स भी मौजूद होते हैं, जो गन्ने के रस में स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं। लेकिन बढ़ते आधुनिकीकरण के चलते हमारी प्राचीन खाद्य परंपराएं कहीं खोती जा रही हैं। यदि हम अपने खान-पान और जीवनशैली में बदलाव करें, तो हमारा शरीर अनेक रोगों से सुरक्षित रह सकता है।पर्याप्त इंसुलिन निर्माण के लिए हमें उचित शारीरिक व्यायाम और शुद्ध खान-पान पर विशेष ध्यान देना होगा। क्योंकि जब तक हम प्रकृति से प्राप्त नेचुरल चीज़ों को नहीं अपनाएंगे और नेचुरल विधियों से तैयार खाद्य पदार्थों को अपने जीवन में शामिल नहीं करेंगे, तब तक लोकल चीनी बनाने वाली कंपनियाँ हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाती रहेंगी।

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